दिवाली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है. श्रीकृष्ण ने इंद्र देव के प्रकोप से गोकुल वासियों को बचाने के लिए तर्जनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत (Govardhan Puja 2020) उठा लिया था. तभी से इस त्योहार को मनाने की परंपरा चली आ रह है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक जमाने में इस पर्वत की विशालकाय ऊंचाई (Govardhan parvat height ) के पीछे सूरज तक छिप जाता था. लेकिन आज इसका कद रोजाना मुट्ठीभर कम हो रहा है.
ऐसा कहा जाता है कि 5,000 साल पहले गोवर्धन पर्वत करीब 30,000 मीटर ऊंचा हुआ करता था. आज इसकी ऊंचाई सिर्फ 25-30 मीटर रह गई है. ऐसी मान्याताएं हैं कि एक ऋषि के शाप के चलते इस पर्वत की ऊंचाई आज तक घट रही है.
एक धार्मिक कथा के अनुसार, एक बार ऋषि पुलस्त्य गिरिराज पर्वत के नजदीक से होकर गुजर रहे थे. इस पर्वत की खूबसूरती उन्हें काफी रास आई. ऋषि पुलस्त्य ने द्रोणांचल से आग्रह किया कि मैं काशी रहता हूं और आप अपना पुत्र गोवर्धन मुझे दे दीजिए. मैं इसे काशी में स्थापित करना चाहता हूं.
द्रोणांचल ये बात सुनकर बहुत दुखी थे. हालांकि गोवर्धन ने संत से कहा कि मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं. लेकिन आपको एक वचन देना होगा. आप मुझे जहां रखेंगे मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा. पुलस्त्य ने वचन दे दिया. गोवर्धन ने कहा कि मैं दो योजन ऊंचा हूं और पांच योजन चौड़ा हूं, आप मुझे काशी कैसे लेकर जाएंगे. पुलस्त्य ने जवाब दिया कि मैं तपोबल के जरिए तुम्हें हथेली पर लेकर जाउंगा.